5 मिनट में आप मुझे ऐसा क्या सीखा या बता सकते है जो मेरे लिए उपयोगी हो?
एक ऐसा चुटकुला जो चुटकुला नहीं है , ज्ञान है ।
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एक पर्यटक, ऐसे शहर मे आया जो शहर उधारी में डूबा हुआ था !
पर्यटक ने रु. 500 का नोट होटल और रेस्टोरेंट के काउंटर पर रखा और कहा :- मैं जा रहा हूँ , आपके होटेल के अंदर कमरा पसंद करने!
होटल का मालिक फ़ौरन भागा घी वाले के पास
और उसको रु. 500 देकर घी का हिसाब चुकता कर लिया !
घी वाला भागा दूध वाले के पास और जाकर रु. 500 . देकर दूध का हिसाब पूरा करा लिया !
गाय वाला भागा चारे वाले के पास और चारे के खाते में रु. 500 कटवा आया !
चारे वाला गया उसी होटल पर ! वो वहां कभी कभी उधार में रेस्टोरेंट मे खाना खाता था। रु. 500 देके हिसाब चुकता किया !
पर्यटक वापस आया और यह कहकर अपना रु. 500 का नोट ले गया कि उसे कोई रूम पसंद नहीं आया !
न किसी ने कुछ लिया
न किसी ने कुछ दिया
सबका हिसाब चुकता !
बताओ गड़बड़ कहाँ है ?
कहीं गड़बड़ नहीं है बल्कि यह सभी की गलतफहमी है कि रुपये हमारे हैं।
खाली हाथ आये थे,
खाली हाथ ही जाना है।
विचार करें और जीवन का आनंद लें। 🙏
सोर्स इंटरनेट
इसे दुनिया के परिप्रेक्ष्य में देखे। इकोनॉमी का दादा आदमी है अमरीका। वो पैसे छापता है। और ऐसी व्यवस्था बनाई है उसने के हरेक को जमा हुए डॉलर्स वापस करने पड़े। पेट्रोल का पेमेंट पूरी दुनिया को डॉलर्स में ही करना पड़ता है। इस तरह से दुनिया के 157 देश उनके पास कहीं से भी आए डॉलर्स अरब देशों को वापिस कर देते है। पेट्रोल इकोनॉमी पर अमेरिका का 80%से ज्यादा कब्जा है।
यहां पर पर्यटक है अमेरिका। और वो दुकानदार है भारत। भारत को उसके आसपास के सभी के बिजनेस चलाना है और आया हुए 500का नोट अमरीका को वापस देना है।
अमेरिका की इकोनॉमी अपने से 50 गुना ज्यादा बड़ी है। जी चिन चिन आप कर रहे हो वो जापान और कई देशों से बहुत पीछे है। तो खैर मनाइए के हम बाकी देशों की तरह कर्ज में ज्यादा डूबे नहीं है। वरना अमरीका हमे कंगाल कर के छोड़ता
Good
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