तू ही है। तेरा

अपने जीवन में हम बहुत लोगो से मिलते है।कभी कभी किसी से इतना जुड़ जाते है।हमे लगता है।मेरे लिए वहीं सब कुछ है।ऐसा आप को लगता पर क्या कभी आप ने सोचा उसे क्या लगता है।हो सकता है उसे कोई और सब कुछ लगता हो।पर इससे कोई मतलब नहीं हमे लगता जो वो सब ठीक ही है।हम सबकी आदत हो गई है।अपने आप से दूर भागने की हमे तो दूसरे में सुकून नजर आता है ।पास जाने पे पता चलता अरे नहीं ये तो दुख दे रहा है।हमारी आशाएं सब मिट्टी में मिल जाती है।याद हमको आपनी आती नहीं ।सरा सुकून खुद में है।हम संसार में दुड़ने चले जाते है।जब वापिस आते है। रोते हुए।हमारे महापुरषों ने कहा है।जिस तरह रेगिस्तान में पानी का भ्रम हो जाता है।और प्याशा पानी के पिछे पिछे भगता अंत में मार जाता है।उसी तरह संसार में हमे सुख का भ्रम होता है।और हम भागने लगते है।अंत में कुछ नहीं हाथ आता बस पश्चाताप करना पड़ता है।
भगवान शिव ने कहा - जेसे भोर का सपना होता है ।उसी तरह संसार है।सपने की सत्यता सपने में लगती है।पर जागने पर पता चलता है।कुछ नहीं।सपने में आप राजा बन जाइए।महल हो शेना हो।नोकर चाकर हो।पर जागते ही सब गायब कहा गया।अगर वह सत्य था।तो नहीं जाना चाहिए।
संतो ने कहा सत्य अटल है।वह कभी नहीं बदलता वह आदि है।वह अंत है।वह आनन्द है 
पर संसार में कुछ भी तो नहीं है ऐसा जो कभी मिते नहीं।संसार में जो भी है ।उसे मिटना है। तो सत्य क्या है।
कहने का तात्पर्य यह है कि हम गलत जगह देख रहे है।जहा देखना है।उदर पीठ कर लिए है।अब पीठ देकर आनन्द को नहीं पा सकते।उसे पाने के लिए उससे प्रेम करना होगा।वह प्रेम से ही मिल सकता है।उसके लिए सब्दो का कोई मोल नहीं उसे तो बस भाव चाहिए।
वह भाव का भूखा है।कहीं दूर भी नहीं है।इतने पास है। की उतना कुछ भी नहीं आप की आंख आप से दूर है।पर मै जिसके बारे में बात कर रहा हूं इतना करीब है।फिर भी आप से दूरी क्यों है।ये दुर्भाग्य ही तो है।मैने बस इशारा किया समझना आप को पड़ेगा।अगर आप समझ गए।तो आप का कल्याण होगा।
मेरी ये पोस्ट आप को कैसी लगी ।कॉमेंट में बताए।धन्यबाद।।

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